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इस ब्लॉग का मुख्य मकसद नयी पीढ़ी में नई और विवेकपूर्ण सोच का संचार करना है|आज के हालात भी किसी महाभारत से कम नहीं है अतः हमें फिर से अन्याय के खिलाफ खड़ा करने की प्रेरणा केवल महाभारत दे सकता है|महाभारत और कुछ सन्दर्भ ब्लॉग महाभारत के कुछ वीरो ,महारथियों,पात्रो और चरित्रों को फिर ब्लोगिंग में जीवित करने का ज़रिया है|यह ब्लॉग महाभारत के पात्रों के माध्यम से आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करता है|

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Saturday, June 23, 2012

महाभारत और रानी माद्री : महाभारत ब्लॉग १६

महाभारत और कुछ सन्दर्भ में आज मैं उस पात्र का बखान करने जा रहा हूँ जिसका इस महापर्व में किरदार तो बहुत छोटा है , परन्तु उससे सम्बंधित घटनाये पूरे कालखंड को प्रभावित करती सी प्रतीत होती है |
माद्री , मद्र देश की राजकुमारी , महाराज पांडु की दूसरी पत्नी थी | जब पांडु हस्तिनापुर से अघोषित वनवास काट रहे थे तब उनका सामना मद्र देश के राजा शाल्य से युद्ध क्षेत्र में हुआ जिसमे उन्होंने शाल्य की सेना को पराजित किया | पांडु की इस वीरता से प्रभावित राजा शाल्य ने अपनी एकमात्र बहिन माद्री का हाथ पांडु के हाथ में दे दिया | परम सुंदरी माद्री को पांडु ने स्वीकार किया और वो पांडु की दूसरी पत्नी के रूप में पांडु और कुंती के साथ रहने लगी |
एक दिन पांडु वन में आखेट कर रहा था तब उसका बाण प्रणय क्रिया में रत एक ऋषि जोड़े को जा लगा | इससे अपने प्राण संकट में पा कर ऋषि जोड़े ने पांडु को श्राप दिया कि जब भी पांडु स्वयं प्रणय क्रीडा में रत होगा तब मारा जायेगा | एक और कारण था कि पांडु का स्नायु तंत्र बेहद कमज़ोर था अतः वह थोड़ी भी उत्तेजना बर्दाश्त नहीं कर पाता था | उसका मन तो काम के प्रति आकर्षित था पर काम के मध्य होने वाली उत्तेजना के प्रति वह कमज़ोर स्नायु की वज़ह से भयभीत था |
पर जब पांडु के पुत्र प्राप्ति का सवाल आया तब ऋषि अगस्त्य ने कुंती को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए वरदान और मंत्र के बारे में बताया जिसके द्वारा वह किसी भी देवता का आव्हान करके , उस देवता के गुणों युक्त पुत्र को 'निरोध' द्वारा प्राप्त कर सकती है अतः उसने 'धर्म' से युधिष्ठिर , 'वायु' से भीम और 'इन्द्र' से अर्जुन को प्राप्त किया और ये तीनो ही पांडु के क्षेत्रज पुत्र कहलाये | पर नियमानुसार कुंती 'निरोध' से केवल तीन पुत्र ही जन्म दे सकती थी अतः उसने ये मंत्र माद्री को दे दिया | माद्री ने 'अश्विनी कुमारों' के आव्हान से नकुल और सहदेव को जन्म दिया |
एक दिन जब माद्री सरोवर में नहा रही थी तब उसके रूप-सौंदर्य और लावण्या को देख पांडु में काम भाव जाग गया और उनसे अपनी स्नायु की कमजोरी और श्राप को भुला दिया और माद्री में रत होने लगा | माद्री भी पांडु के बारे में जानते हुए भी अपने पति में रत होने लगी , परन्तु जैसा की नियति का खेल था कि पांडु उत्तेजना नहीं सह पाया और उसका रक्त उसके सिर पर चढ़ गया और उसके मुख से बाहर आने लगा | तुरंत ही पांडु की मृत्यु हो गयी | पांडु को मरा पाकर माद्री चिल्लाने लगी और स्वयं को उसकी मौत का दोषी मानने लगी |
जब पांडु के अंतिम संस्कार का समय आया तब उसने माता कुंती को अपने पुत्रो को संभला दिया और स्वयं अपने आप को पांडु की मृत्यु का दोषी मानते हुए प्राशचित करने के लिए अपने पति के साथ जलती चिता में सती हो गयी |
सती होने का ये उदाहरण महाभारत के महापर्व में संभवतः पहला और अंतिम ही है | पर इस उदाहरण ने न जाने कितनी स्त्रियों को सती होने पर विवश कर दिया क्योकि हमारे समाज का अभिजात्य वर्ग लगभग १९ वी सदी तक इस उदाहरण को देता रहा और स्त्रियों को उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जबरन पति की चिता में धकेलता रहा | ये उदाहरण न केवल भारतीय समाज में व्यापक बुराई लेकर आया अपितु हमारी आधी आबादी को सदैव तिरस्कृत और अपने पुरुष जीवन साथी से हीन बताता रहा |
पर असल में यहाँ माद्री के सती होने की गलत व्याख्या धर्म के ठेकेदारों द्वारा की गयी | माद्री , जो की पति के प्रेमवश और प्रति की मृत्यु के प्राशचित वश अग्नि में कूदी थी , को सतियो का आदर्श मानकर दूसरी स्त्रियों को सती होने के लिए बाध्य किया गया | वो ठेकेदार सती माद्री मर्म नहीं समझ पाए और उसकी परिणति अधर्म में कर दी |
बाद में माता कुंती ने सदैव नकुल और सहदेव को अपना पुत्र मानकर पला तथा स्त्री कर्त्तव्य की शानदार मिशाल पेश की |
धन्यवाद 

 


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