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इस ब्लॉग का मुख्य मकसद नयी पीढ़ी में नई और विवेकपूर्ण सोच का संचार करना है|आज के हालात भी किसी महाभारत से कम नहीं है अतः हमें फिर से अन्याय के खिलाफ खड़ा करने की प्रेरणा केवल महाभारत दे सकता है|महाभारत और कुछ सन्दर्भ ब्लॉग महाभारत के कुछ वीरो ,महारथियों,पात्रो और चरित्रों को फिर ब्लोगिंग में जीवित करने का ज़रिया है|यह ब्लॉग महाभारत के पात्रों के माध्यम से आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करता है|

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Wednesday, June 29, 2011

महाभारत और सत्यावती:महाभारत ब्लॉग २


आज मैं इस महासमर के एक अहम् किरदार माता सत्यावती के योगदान की चर्चा करूँगा|माता सत्यावती,भरतकुल के राजा शांतनु की भार्या और राजकुमार देवव्रत की माता थी|वैसे तो देवव्रत ने माता गंगा की कोख से जन्म लिया था परन्तु माता सत्यावती को वो गंगा माता से ज़्यादा प्रेम करते थे पर सम्मान वो सभी माताओ का समान रूप से करते थे क्योकि "माता तो होती ही है परम सम्मानीय चाहे वो किसी की भी हो"|

शांतनु और सत्यावती का विवाह इसी शर्त पे हुआ था कि सत्यावती का पुत्र ही राज्यसिंहासन पर आरूढ़ होगा तब देवव्रत ने प्रतिगया की कि वो आजीवन आविवाहित रहेंगे तथा सदैव हस्तिनापुर के राज्यसिंहासन की रक्षा करेंगे|इसी भीष्म प्रतिगया के कारण देवव्रत भीष्म कहलाए|
माता सत्यावती की कोख से दो पुत्रो चित्रांगद और विचित्रवीर्य की उत्पत्ति हुई|चित्रांगद की युवावस्था मे मृत्यु हो जाने के कारण विचित्रवीर्य राजा बना| वह ना तो भीष्म की तरह वीर था और ना ही पुत्र पैदा करने मे समर्थ|अतः माता सत्यावती की ज़िद के कारण एक अयोग्य व्यक्ति राजा बना|परन्तु अयोग्य होने के कारण उसके विवाह मे अरचने आने  लगी तब भीष्म ने माता सत्यावती के आदेशनुसार काशी की राजकुमारियो(अंबा,अंबिका,अंबाला) का विचित्रवीर्य से विवाह हेतु स्वयंवर से अपहरण किया|
बस यही से महाभारत की नीव रखी गयी|वैसे जो व्यक्ति कन्या का अपहरण करता था वही उनसे विवाह के योग्य होता था परन्तु माता सत्यावती के आदेशानुसार उन्हे विचित्रवीर्य को सौप दिया गया|अब अधर्म की नीव रखी जा चुकी थी और अंबा ने इस अधर्म के प्रति विद्रोह कर दिया और धर्म की दुहाई देते हुआ भीष्म से विवाह की ज़िद की परंतु भीष्म तो प्रतिगया कर चुके थे अतः अंबा राजभवन छोड़ के चली गयी और भीष्म से प्रतिशोध लेने के लिए तप करने लगी|
अंततः विचित्रवीर्य मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा माता सत्यावती ने महर्षि वेदव्यास से अपने क्षेत्रज पौत्र प्राप्त किए|
ना केवल माता सत्यावती ने भीष्म को उनके अधिकार से वंचित किया अपितु भरतकुल मे अन्याय एवं अधर्म का बीज़ बौ दिया|वैसे इसी कर्म मे भीष्म भी बराबर के दोषी है क्योकि उन्होने धर्म से अधिक अपनी प्रतिगया पर ध्यान दिया|अंततः इसी बीज़ ने कुरुक्षेत्र के भीषण युद्द का फल दिया|
पर क्या करे माताए होती ही एसी ही है जो अपने पुत्रो के लिए संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु धर्म को भी छोड़ देती है|
                                                  धन्यवाद|