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Friday, July 01, 2011

महाभारत और गुरु द्रोणाचार्य:महाभारत ब्लॉग ३


गुरु द्रोणाचार्य,ना केवल धनुरविद्या के महान आचार्य अपितु स्वयंभु श्रेष्ठ धनुर्धर,गुरु परसराम के शिष्य व एक अतन्त उत्कर्ष सेनानायक थे|इस जयसहिंता मे उनके योगदान के बारे चर्चा करना केवल और केवल सूर्य को दीपक दिखाने के समान है|वे उन महान योद्दाओ के सृजनकार थे जिन्होंने इस धर्म कुंड मे वीरता की आहुति दी|
गुरु द्रोणाचार्य का जन्म एक ब्राह्मण कुल मे हुआ था|उन्होने गुरु परसराम से अस्त्र शस्त्र की विधया प्राप्त की|वहाँ उनकी मुलाकात द्रुपद से हुई जो उनका गुरु भाई था|उनका विवाह कृपाचर्या की भगिनी क्रपी से हुआ तथा उनके गर्भ से अश्वत्थामा की उत्पत्ति हुई|गुरु द्रोणाचार्य अत्यंत संतोषी ब्राह्मण थे तथा जो मिलता था उससे अपनी उदरपूर्ति कर लेते थे परंतु उन्हे अपने पुत्र से बहुत प्रेम था|
लेकिन एक दिन जब उन्होने देखा क़ि उनकी पत्नी अपने पुत्र को गाय का दूध पिलाने मे असमर्थ थी तो अश्वत्थामा को चावल के पानी मे शर्करा घोल के पिला रही है तब उनके मन मे अपने पुत्र को गाय का दूध पिलाने के लिए धन संग्रह की इच्छा हुई| अतः वे अपने गुरु भाई द्रुपद के पास गये तब द्रुपद ने उन्हे पहचानने से भी इनकार कर दिया तथा उन्हे अपमानित कर भगा दिया|
तब अपने गुरुभाई के व्यवहार से दुखी द्रोणाचार्य ने द्रुपद से प्रतिशोध लेने हेतु अपने पत्नी के भाई कृपचर्या  के पास गये|जहाँ भीष्म ने कुरू राजकुमारो की शिक्षा हेतु उन्हे हस्तिनापुर मे स्थान दिया|उन्होने सभी कुरू राजकुमारो को आस्त्रो व शस्त्रो की शिक्षा दी|
अर्जुन उनका प्रिय शिष्य था तथा अपने पुत्र के बाद वे अर्जुन को सबसे ज़्यादा स्नेह देते थे अतः उन्होने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का आशीर्वाद दिया|
अतः अपने वचन को पूरा करने के लिए उन्होने एकलव्य का अंगूठा कटवा लिया तथा कर्ण जैसे शिष्य को भी विधयादान से मना कर दिया|
उन्होने अर्जुन जैसे महान योद्दा तो दिए परंतु द्रुपद से प्रतिहिंसा की भावना के कारण सर्वप्रथम उन्होने द्रुपद को पांडव की सहायता से बंदी बना कर उनका आधा राज्य छीन लिया|इस कारण द्रुपद ने भी बदला लेने हेतु धृाष्तधुम्न को तैयार किया|
अब हम गुरु द्रोणाचार्य के कुछ कृत्यो की चर्चा करेंगे जिस के कारण उन्हे इतना महान होते हुए भी धर्म युद्ध मे अधर्म के साथ खड़ा होना पड़ा|सर्वप्रथम वे उस राज्य सभा मे कुछ नही बोले जहाँ द्रोपति जैसी नारी का वस्त्राहरण हुआ|क्योकि उनकी धर्म दृष्टि को पुत्र मोह ने ढक लिया था| इसके बाद वे सबकुछ जानते हुए भी कौरवो पक्ष मे युद्ध लड़े |
लेकिन इसके बाद भी अभिमन्यु वध के लिए उन्हे इतिहास कभी  क्षमा नही करेगा क्योकि उनके सेनापति रहते हुए अभिमन्यु की निर्मम हत्या कर दी गयी|
वो पिता जिसकी आँख पे पुत्र मोह की पट्टी बँधी हुई है तथा इसके फलस्वरूप वो प्रकाश एवं अंधकार का निर्णया नही कर पा रहा है तब ना केवल वो अपने पुत्र का अहित कर रहा है अपितु अपनी आत्मा का भी क्षय कर रहा है|
मेरा मानना है कि गुरु द्रोणाचार्य की धृाष्तधुम्न के हाथो हुई हत्या एक धोखा हो सकता है परन्तु धर्म की विजय के लिए ये आवश्यक था क्योकि उस महान योद्धा के रहते धर्म की विजय संभव नही थी और धर्म कोई एसी वस्तु नही जिसे एक द्रोणाचार्य के लिए अधर्म की रखैल बना दिया जाए|
                                                                          धन्यवाद|