स्वागतम्

इस ब्लॉग का मुख्य मकसद नयी पीढ़ी में नई और विवेकपूर्ण सोच का संचार करना है|आज के हालात भी किसी महाभारत से कम नहीं है अतः हमें फिर से अन्याय के खिलाफ खड़ा करने की प्रेरणा केवल महाभारत दे सकता है|महाभारत और कुछ सन्दर्भ ब्लॉग महाभारत के कुछ वीरो ,महारथियों,पात्रो और चरित्रों को फिर ब्लोगिंग में जीवित करने का ज़रिया है|यह ब्लॉग महाभारत के पात्रों के माध्यम से आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करता है|

पृष्ठ

Saturday, July 30, 2011

महाभारत और वीर अभिमन्यु :महाभारत ब्लॉग १०

वीर अभिमन्यु ,एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी वीरता ,पौरुष और मृत्यु ने तेहरवें दिन महाभारत के युद्ध की दिशा को बदल डाला|युद्ध के इस तेहरवें दिन ने न केवल युद्ध के तात्कालिक नियमो  को प्रभावित किया अपितु आज तक के सभी युद्धों में युद्ध नियमो की परिभाषा को पूर्णतः समाप्त कर दिया |महाभारत के इस विराट युद्ध से पहले ,युद्ध ,नियमो के अधीन लड़ा जाता था|जिसके अंतर्गत सूर्य उदय से पूर्व और सूर्य अस्त के पश्चात् युद्ध लड़ना और युद्ध  सबंधी कोई भी क्रियाकलाप किसी योद्धा के  कायर होने का सूचक था और युद्ध में निहत्थे योद्धा पर शस्त्र या अस्त्र चलाना किसी योद्धा के कायर होने का प्रमाण था|पर आज की युद्ध नीति में इन सभी नियमो का कोई अवशेष नहीं मिलता है|और ये परम्परा इसी महासमर के तेहरवें दिन के घटनाक्रम की देन है|
अभिमन्यु का जन्म अर्जुन की पत्नी सुभद्रा की कोख से हुआ था|सुभद्रा,जो कृष्ण और बलराम की बहन थी,एक अत्यंत आकर्षक और अस्त्र-शस्त्र चलने में निपुण युवती थी|अर्जुन ने  उसे रेवतक पर्वत पर यादवों के उत्सव में देखा और उसे मन ही मन पसंद कर लिया|बलराम सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे पर कृष्ण को अपनी प्रिय बहन का विवाह दुर्योधन जैसे आततायी के साथ बर्दाश्त नहीं था अतः उन्होंने अर्जुन की इच्छा को जानते हुए उसे सुभद्रा से विवाह करने हेतु सुभद्रा का अपहरण करने की सलाह दी और अर्जुन के लिए अपहरण में प्रयुक्त रथ और अस्त्रों-शस्त्रों की व्यवस्था की|अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण कर उससे विवाह किया|पर इस पूरे प्रसंग में प्राचीन भारत की विवाह सम्बन्धी स्वछंदता का आभास मिलता है|क्योकि कुंती कृष्ण की बुआ थी और अर्जुन उसका बुआ पुत्र|पर फिर भी कृष्ण ने अपनी बहन का विवाह अर्जुन से करने में योगदान दिया,पर आज के हिन्दू समाज में ये विवाह अमान्य माना जाता|

अभिमन्यु जब सुभद्रा की कोख में था तब अर्जुन ने सुभद्रा को युद्ध में उपयोग आने वाली 'चक्रव्यूह ' रणनीति  का सविस्तार वर्णन सुनाया क्योकि उस समय केवल गुरु द्रोण,स्वयं अर्जुन और वासुदेव कृष्ण ही 'चक्रव्यूह ' में अंदर घुसना और उससे बाहर निकलना जानते थे|सुभद्रा ने चक्रव्यूह को तोड़ अंदर जाने की बात बड़े ध्यान से सुनी जिससे उसके गर्भ में पल रहे शिशु ने भी ग्रहण कर लिया पर जब अर्जुन उसे चक्रव्यूह से बाहर आने का मार्ग बताने लगा तब सुभद्रा को नींद आ गयी जिससे अभिमन्यु केवल अंदर जाने का रास्ता ही जान पाया|
अभिमन्यु के जन्म के पश्चात् पांडवों को १२ वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास पूरा करना था अतः अभिमन्यु द्वारका में वासुदेव कृष्ण के सानिध्य में पला-बढ़ा|अभिमन्यु में सदैव वासुदेव कृष्ण से चक्रव्यूह के पूरे चक्र को सीखने की कोशिश की पर वासुदेव ने उसे कभी बाद में तो कभी अपने पिता से सीखने को कहा|अभिमन्यु का विवाह मत्स्यराज की पुत्री उत्तरा से हुआ |उत्तरा अज्ञातवास के दौरान अर्जुन की शिष्या थी|
अभिमन्यु ,वासुदेव कृष्ण का भांजा और अर्जुन का पुत्र तो था ही पर उसमे अदभुत युद्ध कला थी जिसके दम पर वह अकेला ही कई सेनाओ पर भारी था|

जयसहिंता के अनुसार युद्ध के तेहरवें दिन कौरव सेना के प्रधान सेनापति आचार्य द्रोण ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने का विचार रखा ताकि युद्ध समाप्त हो जाये और पांडव हार जाये अतः उन्होंने युद्ध के भयंकरतम व्यूहों में एक 'चक्रव्यूह ' की रचना करने का विचार किया|वैसे युद्ध में कई युद्ध व्यूह उपयोग आते थे जैसे "सर्पव्यूह","कुर्मव्यूह"  आदि पर 'चक्रव्यूह ' सर्वाधिक भयंकर और दुर्जेय था|परन्तु पांडवों में अर्जुन और उनका सारथि मधुसूदन प्रत्येक व्यूह को तोडना जानते थे चाहे वो 'चक्रव्यूह ' क्यों न हो|अतः गुरु द्रोणाचार्य और दुर्योधन ने मिलकर सुशर्मा और उसके भाई को अर्जुन युद्ध लड़ते लड़ते उसे शेष पांडवो से दूर ले जाने के लिए कहा|
तेहरवे दिन सुबह सुशर्मा अर्जुन को लड़ते लड़ते दूर ले गया और अर्जुन की अनुपस्थिति में गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने हेतु "चक्रव्यूह " रच डाला |पर वीर बालक अभिमन्यु ने,जिसकी वय बमुश्किल १६-१७ वर्ष होगी , चक्रव्यूह को तोड़ने की कला का रहस्योदघाटन करते हुए पांडव सेना की कमान संभाली|उसने अपने ताऊश्री युधिष्ठिर और भीम को अपने पीछे आने को कहा और 'चक्रव्यूह ' में घुस गया पर सिन्धु नरेश राजा  जयद्रथ, जिसे एक दिन अर्जुन के बिना पूरी पांडव सेना को रोक सकने का वरदान प्राप्त था,ने  युधिष्ठिर ,भीम इत्यादि को रोक लिया और अभिमन्यु को चक्रव्यूह में जाने दिया|अभिमन्यु में चक्रव्यूह को भेद डाला था और इसके प्रहरी दुर्योधन पुत्र लक्ष्मण और दुशासन पुत्र  को मार  डाला था |इसके उपरांत उसने अश्मक पुत्र,शल्य पुत्र रुध्मराथा ,द्रिघ्लोचन ,कुन्दवेदी ,शुसेना,वस्तिय आदि कई वीरो को यमराज के पास पंहुचा दिया|उसने द्वन्द युद्ध में कर्ण जैसे महारथी को घायल कर दिया और अश्वत्थामा ,क्रिपाचार्य और भूरिश्रवा जैसे रथियो को पराजित कर दिया|पर अपने प्रिय पुत्र लक्ष्मण की मृत्यु से बोखलाए दुर्योधन ने खतरे को भांपते हुए सभी महारथियों को बालक अभिमन्यु पर एक साथ प्रहार करने को कहा जिसके परिणामस्वरूप कर्ण,अश्वत्थामा ,भूरिश्रवा ,क्रिपाचार्य,द्रोणाचार्य ,शल्य,दुर्योधन,दुशासन जैसे महारथियों ने एक साथ अभिमन्यु पर प्रहार किया और उसके अस्त्र-शस्त्र समाप्त करवा दिए|फिर कर्ण ने उस बालक के रथ को तीर से तोड़ डाला और उस निहत्थे बालक पर सभी महारथी एक साथ टूट पड़े|वो निहत्था बालक रक्त की अंतिम बूँद तक इन महारथियों से रथ के पहिये को उठा कर लड़ा पर तलवारों ने उसकी जान ले ली|और फिर जयद्रथ ने बालक अभिमन्यु के शव को पाँव से मारा |"यह सब उसी प्रकार से था जैसे एक सिंह को सौ सियारों ने घेर कर मार डाला और फिर उस बहादुरी का जश्न मनाया हो|"

पर जो भी हो बालक अभिमन्यु की हत्या ने युद्ध नियमो की बलि ले ली|जिसका ज्यादा खामियाजा कौरवों ने ही भुगता क्योकि कर्ण , द्रोणाचार्य ,दुशासन,और दुर्योधन का वध युद्ध नियमो की इसी बलि के भेट चढ़ा क्योकि जब अधर्म अपनी पूरी नीचता पर उतर आता है तब वासुदेव कृष्ण जैसे नीतिज्ञ भी अधर्म को उसकी औकात दिखा ही देता है|
वैसे अभिमन्यु वध महारथी कर्ण और गुरु द्रोणाचार्य के जीवन में कलंक साबित हुआ और इसी घटना ने इन महारथियों की मृत्यु का मार्ग प्रशस्त किया|कर्ण वध और द्रोणाचार्य वध को इतिहास अभिमन्यु वध के पश्चात् ही तो उचित मानता!!!!
वीर अभिमन्यु को मेरा सदर नमन|
                                                 धन्यवाद|