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इस ब्लॉग का मुख्य मकसद नयी पीढ़ी में नई और विवेकपूर्ण सोच का संचार करना है|आज के हालात भी किसी महाभारत से कम नहीं है अतः हमें फिर से अन्याय के खिलाफ खड़ा करने की प्रेरणा केवल महाभारत दे सकता है|महाभारत और कुछ सन्दर्भ ब्लॉग महाभारत के कुछ वीरो ,महारथियों,पात्रो और चरित्रों को फिर ब्लोगिंग में जीवित करने का ज़रिया है|यह ब्लॉग महाभारत के पात्रों के माध्यम से आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करता है|

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Friday, July 15, 2011

महाभारत और हिडिम्बा :महाभारत ब्लॉग ८

यूँ तो महाभारत में प्रत्येक किरदार का अपना -अपना महत्व है किन्तु कुछ किरदारों की भूमिका छोटी होने के बाबजूद बहुत महत्वपूर्ण और सारगर्भित होती है|ऐसे ही पात्र की चर्चा आज हम करेंगे जो भूमिका छोटी होने के बाद भी अमिट छाप छोड़ जाती है|
महाभारत का ये युद्ध हुआ था न्याय और अन्याय के बीच परन्तु धर्म और अधर्म दोनों ने ही युद्ध  जीतने के लिए युद्ध में वर्जित प्रत्येक हथकंडे को अपनाया|अभिमन्यु वध,द्रोणाचार्य वध ,कर्ण वध,दुस्शासन वध ,जयद्रथ वध आदि  इन्ही कथित हथकंडों से सम्बंधित हैं|परन्तु इस युद्ध में मायावी अथार्थ राक्षसी शक्तियों का प्रयोग भी किया गया|इन सभी मायावी शक्तियों के प्रयोग ने इस युद्ध की दशा और दिशा बदल डाली|कुछ मायावी शक्तियां दुर्योधन के पक्ष से लड़ी और घटोत्कच नाम की मायावी शक्ति धर्म के पक्ष में लड़ी|अतः अब हम घटोत्कच के युद्ध में बलिदान और उसकी माता हिडिम्बा के योगदान की चर्चा करेंगे|
हिडिम्बा ,एक राक्षसी समाज की युवती थी|राक्षस अथार्थ रक्ष जो यक्ष,दक्ष एवं रक्ष तीन मानव नस्लों में से एक थे|चुकि आर्यों(दक्षो ) का भारतवर्ष पर नियंत्रण था अतः उन्होंने रक्षो को जंगलो और काननो ने धकेल दिया|वैसे रक्ष आर्यों से कम सुशिक्षित और मानवभोजी होते थे परन्तु दक्षो से अधिक शारीरिक क्षमता और मायावी शक्तियों से युक्त होते थे|पर सभी रक्ष संगठित और सामाजिक नहीं थे अतः अपने बुद्धि बल और सामाजिक संगठन की बदौलत दक्षो ने रक्षो को सीमित और शक्तिविहीन कर दिया था|
  हिडिम्बा ,इसी समाज में पैदा हुई थी तथा अपने भाई हिडिम्ब के साथ वन में रहती थी|दोनों भाई-बहनों का पूरे जंगल में बहुत आतंक था तथा सभी मानव यहांतक की ऋषि-मुनि भी इस वन में रहने से भय खाते थे क्योकि ये राक्षस न केवल उदरपूर्ति के लिए जंगल के वनचरों को खाते थे अपितु मौका लगने पर मानवो का सुस्वाद मांस भी नहीं  छोड़ते थे|अतः दोनों भाई बहन जंगल में राजा की तरह रहते थे |
लाक्षाग्रह के भीषण कांड के बाद पांडव भी जंगलों में इधर उधर भटक रहे थे|अतः संयोगवश पांडव और माता कुंती उसी वन में पहुचे जहाँ हिडिम्ब और हिडिम्बा का आतंक था|सूचना मिलने पर दोनों भाई बहन मानवों का सुस्वाद मांस खाने के लिए इनके पास गए |वहां जब हिडिम्बा ने भीम को देखा तब उसके राक्षसी डील ड़ोल को देख हिडिम्बा कुछ मोहित सी हो गयी|परन्तु भाई हिडिम्ब के मन में तो मानव मांस की इच्छा थी अतः उसने पांड्वो को ललकारा और डराने लगा|पर भीम जो स्वयं कई हाथियों का बल रखता था ,माता  से आज्ञा लेकर हिडिम्ब से लड़ने और उसका वध करने गया जहाँ भयंकर द्वंद युद्ध में भीम ने हिडिम्ब को मार दिया पर हिडिम्बा को अपने भाई की मृत्यु का कोई अफ़सोस नहीं हुआ बल्कि भीम के इस अमानवीय कृत को देख वो उस पर मोहित हो उठी तथा भीम से उसने प्रणय निवेदन किया|पर भीम ने इसे अस्वीकार करते हुए माता कुंती से आज्ञा लेने  को कहा|  
पहली मर्तबा प्रेम के वशीभूत वो राक्षस कन्या भीम से निराश होकर माता कुंती के पास गयी परन्तु बड़े पुत्र युधिष्ठिर के विवाह न होने के कारण,कुंती ने हिडिम्बा के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया परन्तु जब हिडिम्बा ने केवल प्रणय की बात कही और केवल पुत्र प्राप्ति का लक्ष्य बताया तब कुंती ने इस राक्षस कन्या के इस दीन निवेदन को स्वीकार कर लिया तथा वन में भीम और हिडिम्बा प्रणय रत हुए|जहाँ हिडिम्बा के गर्भ से भीम पुत्र घटोत्कच का जन्म हुआ जो आधा दक्ष और आधा रक्ष था|
उस घटना के बाद भीम तो लौट गए पर हिडिम्बा ने घटोत्कच को राक्षसी संस्कार नहीं सिखाये न ही मानवो का मांस खाना अपितु उसे  अपने पिता की तरह वीरता और मानवता की भलाई की शिक्षा दी|वैसे तो राक्षस कन्या के गर्भ से जन्म लेने के कारण घटोत्कच बलिष्ठ और मायावी था परन्तु उसने राक्षसों जैसे कर्म नहीं किये|जब महाभारत के युद्ध की सूचना हिडिम्बा को मिली तब उस माता ने अपने पुत्र की जान की परवाह करे बगैर धर्म के युद्ध में अपने पुत्र को लड़ने को भेजा वो जानती थी की उसके पुत्र के पास मायावी शक्ति और शारीरिक बल के अलावा कोई शस्त्र और अस्त्र नहीं है और इस युद्ध में कर्ण जैसे महारथी उसे मार ही देंगे पर माता के स्नेह को संतुलित कर उसने घटोत्कच को धर्म युद्ध में पिता के पक्ष में लड़ने भेजा|
जब इस महासमर में घटोत्कच लड़ने आया तब दुर्योधन भी कुछ राक्षसों का प्रयोग  करने पर उतर आया था परन्तु घटोत्कच ने सर्वप्रथम उन राक्षसों को मारा जो दुर्योधन के पक्ष में थे|उसके बाद वो कौरव सेना पर कहर बन कर टूट पड़ा|कहते है कि महारथी कर्ण के पास एक ऐसा बाण था जो उसे सूर्य देव से वरदान में प्राप्त हुआ था और अर्जुन के वध के लिए उसने उसे संभाल कर रखा था|पर घटोत्कच के कहर और प्रहार से बोखलाए दुर्योधन ने कर्ण को उस बाण को चलाने को कहा ताकि घटोत्कच नाम कि ये वर्तमान समस्या का निदान हो जाये अतः युवराज दुर्योधन की आज्ञा से कर्ण ने अपना बाण घटोत्कच पर चला दिया जिससे घटोत्कच की मृत्यु हो गयी|
इस युद्ध में घटोत्कच नाम का शूरवीर तो मारा गया पर उसने कर्ण-अर्जुन युद्ध में अर्जुन की मृत्यु टाल दी|और अर्जुन वो जिसके बाणो के नीचे सभी पांडव सुरक्षित थे|अतः यहाँ से ही धर्म विजय सुनिश्चित हुई|
यूँ तो हिडिम्बा का युद्ध में कोई शारीरिक योगदान नहीं था पर मानसिक और भावनात्मक 'बलिदान ' अवश्य था|उसने न केवल अपने पुत्र के धर्म के पक्ष में लड़ने भेजा अपितु रक्ष कुल का गौरव भी बढाया|और उसका यही "बलिदान" धर्म युद्ध में धर्म की विजय में परिणित हुआ|अतः उस राक्षस कन्या को मेरा सदर नमन|
                                                                                       धयवाद|