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इस ब्लॉग का मुख्य मकसद नयी पीढ़ी में नई और विवेकपूर्ण सोच का संचार करना है|आज के हालात भी किसी महाभारत से कम नहीं है अतः हमें फिर से अन्याय के खिलाफ खड़ा करने की प्रेरणा केवल महाभारत दे सकता है|महाभारत और कुछ सन्दर्भ ब्लॉग महाभारत के कुछ वीरो ,महारथियों,पात्रो और चरित्रों को फिर ब्लोगिंग में जीवित करने का ज़रिया है|यह ब्लॉग महाभारत के पात्रों के माध्यम से आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करता है|

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Tuesday, December 20, 2011

महाभारत और गांधारराज शकुनी : महाभारत ब्लॉग १३

जयसहिंता के इस अध्याय में उस चरित्र के बारे में चर्चा करेंगे जो द्वापर युग के गुणधर्म का बखान करता है और साथ ही मानवता को सीख देता है कि बुद्धि बल ,शस्त्र बल से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है परन्तु बुद्दि का अनुचित उपयोग न केवल उस व्यक्ति विशेष का विनाश कर देती है अपितु उसके प्रियजनों का भी विनाश कर देती है|वह चरित्र ,जिसमे द्वापर युग की सभी बुराईया अपने पूर्ण रूप में विद्धमान थी, गान्धारराज शकुनी था |
शकुनी था तो बहुत चालाक और उसने अपनी साज़िशो से सदैव ही पांडवो को मुसीबत में डाला परन्तु उस देवकीनंदन के सामने शकुनी की धूर्ता भी कम थी जिसने धर्म की विजय के लिए शकुनी की सभी चालों को अंत में मात टिका दी| जैसा की स्वयं वासुदेव कृष्ण ने गीता में कहा है -"द्यूतं छलयतामस्मि  तेजस्तेजस्विनामहं| जयोअस्मि व्यवसायोअस्मि सत्वं सत्ववतामहं ||" अर्थात् मैं छलियों में जुआ हूँ और तेजस्वियो में तेज हूँ| मैं विजय हूँ, मैं साहस और बलवानो में बल हूँ|

शकुनी का जन्म गांधार के राजा सुबाल के राजप्रासाद में हुआ था|वह माता गांधारी का छोटा भाई था| वह जन्म से ही विलक्षण बुद्धि का स्वामी था अतः राजा सुबाल को अत्यन प्रिय था |गांधार वह राज्य जहाँ आधुनिक अफगानिस्तान का शहर कंधार बसा हुआ है| कंधार ,गांधार का ही अपभ्रश है|गांधार राज्य सैन्य और क्षेत्रफल की दृष्टि से तो कमजोर था परन्तु एक स्वाभिमानी राज्य था|
हस्तिनापुर में जब राजकुमार धृतराष्ट्र की वय विवाह अनुरूप हो रही थी तब माता सत्यवती के साथ-साथ पितामह भीष्म की भी चिंता बढ़ती जा रही थी और कारण थी धृतराष्ट्र की नेत्रहीनता| कोई भी राजा हस्तिनापुर के राजसी वैभव को देखकर भी नेत्रहीन धृतराष्ट्र से अपनी कन्या का विवाह नहीं चाहता था| अतः कन्या का अपहरण करने के सिवा और कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा था पर धृतराष्ट्र तो इसके योग्य भी नहीं था | एक उपाय था कि स्वयं पितामह भीष्म कन्या का अपहरण कर लाये जैसा कि उन्होंने विचित्रवीर्य के लिए किया था परन्तु अम्बिका और अम्बालिका ने उनसे इस कार्य को दुबारा न करने का वचन ले लिया था|उस समय गांधार राजकुमारी के रूप लावण्य की चर्चा पूरे आर्यावर्त में थी अतः पितामह भीष्म गांधार की राजसभा में धृतराष्ट्र का रिश्ता लेकर गए|परन्तु जैसा कि भीष्म को आभास था राजा सुबाल ने इस विवाह प्रस्ताव को ठुकुरा दिया |अब पितामह भीष्म को क्रोध आ गया उन्होंने अपनी सेना के साथ गांधार पर चढ़ाई करने और उस छोटे से राज्य को समाप्त करने की धमकी दी|अंततः राजा सुबाल को भीष्म के आगे झुकना पड़ा और अत्यंत क्षोभ के साथ अपनी सुन्दर पुत्री का विवाह राजकुमार धृतराष्ट्र से करना पड़ा|
विवाह की बात शायद युवती गांधारी पचा न पाई और उसने भी जीवन भर हस्तिनापुर और अपने पति धृतराष्ट्र को न देखने की प्रतिज्ञा कर ली और अपनी आखों पर सदा के लिए पट्टी बांध ली|स्वाभिमानी राज्य गांधार के लिए यह अपमान का घाव युद्ध में पराजय से भी अधिक था पर एक राजा ने अपनी प्रजा को बचाने के लिए अपनी पुत्री को भीष्म के हाथो बेच दिया था | कहने को तो गांधारी  धृतराष्ट्र की ब्याहता थी पर केवल तन से,मन से नहीं| राजा सुबाल ने भी अपमान का बदला लेने की ठान ली और कुरु कुल के और भीष्म के विनाश की प्रतिज्ञा मन ही मन कर ली|इस प्रयोजन हेतु राजा सुबाल ने अपने पुत्र शकुनी को तैयार किया और कहा कि- कुल के अपमान का बदला लेने के लिए और कुरुकुल को समाप्त करने के लिए मैं तुझे हस्तिनापुर भेज रहा हूँ | तू अपनी बहन के साथ हस्तिनापुर जायेगा और कुरुकुल को समाप्त करने और अपना आधिक्य जमाने की भूमिका तैयार करेगा|
एक कहानी और भी सामने आती है कि गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से पहले एक बकरे से किया गया और फिर उस बकरे की बलि दे दी गयी | जिससे गांधारी विधवा हो गयी और धृतराष्ट्र से गांधारी का दूसरा विवाह हुआ माना गया | इस तरह ये धृतराष्ट्र का अपमान हुआ| परन्तु जब ये बात धृतराष्ट्र को पता चली तो उसने सुबाल समेत सभी परिवार वालो को कारागार में डाल दिया और उन्हें केवल एक वक़्त का भोजन दिया जाता था जिससे ये सब भूखे मर जाये| पर सुबाल ये भोजन शकुनी को दे देते थे ताकि उनमे से कोई तो जिन्दा बचे|इस तरह शकुनी ने अपने परिवार की मृत्यु का बदला लेने की ठान ली|
पर चाहे जो भी रहा हो शकुनी जैसा तेज और चुस्त दिमाग वाला व्यक्ति प्रतिहिंसा का भाव लिए हस्तिनापुर के राजमहल में उपस्थित था|उसने अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु गांधारी के पुत्रो और धृतराष्ट्र की महत्वाकान्शा को चुना | सर्वप्रथम उसने गांधारी को  धृतराष्ट्र को वश में करके उसके भाई पाण्डु के विरुद्ध षड़यंत्र रचने और राज्यसिंहासन पर धृतराष्ट्र का आधिपत्य जमाने को कहा | तदनुपरांत उसने बालक दुर्योधन को अपना शस्त्र बनाया और उसके मामा के रूप में पाण्डु पुत्रो को समाप्त करवाने की योजनाये बनाने लगा| क्योकि पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर ही हस्तिनापुर के तख़्त का सही हकदार था और युधिष्ठिर के रहते वह कुरुकुल को समाप्त करने की अपनी योजना पर अमल नहीं कर सकता था|सर्वप्रथम उसने दुर्योधन के प्रतिद्वंदी बालक भीम को भी प्रमाणकोटि में विष देकर मारने की योजना बनाई पर असफल रहा|पहले पहल तो गांधारी भी मन में कुरुकुल का विनाश चाहती थी परन्तु बाद में सत्य को भांपते हुए उसने शकुनी का साथ देना बंद कर दिया|
जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर का युवराज घोषित हुआ तब शकुनी ने लाक्षागृह का षड़यंत्र रचा और सभी पांडवो को वारणावत में जिन्दा जलाकर मार डालने का प्रयत्न किया | शकुनी किसी भी तरह दुर्योधन को हस्तिनापुर का राजा बनते देखना चाहता था ताकि उसका दुर्योधन पर मानसिक आधिपत्य रहे और वह इस मुर्ख दुर्योधन की सहायता से भीष्म और कुरुकुल का विनाश कर सके अतः उसने ही पांडवो के प्रति दुर्योधन के मन में वैर भाव जगाया और उसे सत्ता का लोलुप बना दिया|
शकुनी पैर से लंगड़ा तो था पर चौसर अथवा द्यूतक्रीडा में अत्यंत प्रवीण था | उसका चौसर का अभ्यास कहे अथवा उसका पासो पर स्वामित्व ,वह जो चाहता वो अंक पासो पर आते |एक तरह से  उसने पासो को सिद्ध कर लिया था कि उसकी उंगलियों के घुमाव पर ही पासो के अंक पूर्वनिर्धारित थे|कहते है कि वो पासे उसने अपने पिता की हड्डियों से बनाये थे परन्तु उस धूर्त शकुनी ने क्षत्रियो में द्यूतक्रीडा को पुनर्जीवन दिया था और उसने द्यूत को इतना प्रचारित कर दिया था कि कोई भी क्षत्रिय द्यूतनिमंत्रण  को ना नहीं कहता था | द्यूत में ना कहना क्षत्रित्व के अपमान का प्रश्न बन गया था|
जब दुर्योधन इन्द्रप्रस्त से हताश एवं निराश होकर लौटा और मन ही मन में क्षोभ में डूबने लगा तब शकुनी ने दुर्योधन के पांडवो को द्यूतनिमंत्रण देने और हस्तिनापुर आमंत्रित करने का सुझाव दिया | जब युधिष्ठिर शकुनी के साथ खेलने लगा तब शुरूआती बाज़ियाँ युधिष्ठिर को  प्रोह्साहित करने हेतु शकुनी हार गया परन्तु बाद में शकुनी के पासो का चक्र युधिष्ठिर पर चल गया | वो शकुनी ही था जिसने द्रौपदी को दाव पर लगाने को कहा था |इस तरह शकुनी के पासो ने पांडवो को बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास दिलवा दिया|
वनवास में भी शकुनी ने पांडवो पर आक्रमण कर उन्हें मार डालने की साज़िश रची पर वह सफल नहीं हो पाया|शकुनी जानता था कि युद्ध अवश्यंभावी है अतः उसने दुर्योधन को युद्ध के लिए तैयार रहने और शक्ति एकत्रित करने को कहा | बलराम द्वारा दुर्योधन को गदा युद्ध सिखाना और वासुदेव कृष्ण के पास दुर्योधन को सहायता मांगने भेजना ,शकुनी के परामर्शानुसार ही हुआ था|
शकुनी के रूप में द्वापर अपने पूर्ण स्वरुप में विद्यमान था| और इस बात का संकेत था कि कलयुग में शकुनी जैसा पुरुष ,मामा अथवा अन्य रूपों में आसानी से मिल जायेगे और कलियुग में शकुनी तो मिलना आम बात होगी पर कोई कलियुग का पूर्णावतार हजारो शकुनियो का एक शकुनी होगा|
परन्तु महाभारत में भी वो परम सत्ता उपस्थित थी जो सत्य और असत्य,सही और ग़लत,धर्म और अधर्म का भेद जानती थी और वह परम सत्ता वासुदेव कृष्ण के रूप में धर्म के पक्ष में हजारो शकुनियो और हजारो दुर्योधनो को काल-कलवित करने के लिए विद्यमान थी|
महाभारत का युद्ध हुआ ,शकुनी सहदेव के हाथो मारा गया पर शकुनी का प्रण पूरा भी हो गया क्योकि जिस कुरुकुल का वह विनाश चाहता था वो समाप्त हो गया पर अपनी ही बहन के पुत्रो की आहुति पर|
परन्तु प्रश्न है कि शकुनी , मामा शकुनी क्यों बना??क्यों महाभारत का युद्ध हुआ??क्यों भारतवर्ष का इतिहास और वर्तमान उस युद्ध से दूषित हुआ?? और उत्तर है भीष्म की अनुचित प्रतिज्ञा और उसे पूरी करने का हठ|

लेकिन शकुनी ने एक राजनीतिक और कूटनीतिक दुर्गुण का जन्म कर दिया जिसे समाज ने आज आत्मसात कर लिया है , वह है जुए का खेल और राजनीतिक हत्याएँ| और शायद कुरुक्षेत्र की रण भूमि में वासुदेव कृष्ण द्वारा किये गए छल भी शकुनी की नीति का प्रतिउत्तर ही था| क्योकि शकुनी की नीति को उसी की नीति से से परास्त किया जा सकता था | बस फर्क इतना था कि उस केशव ने धर्म को बचाने के लिए शकुनी नीति का उपयोग किया और शकुनी ने धर्म को मिटाने में अपनी नीति का उपयोग किया| पर धर्म इतना बेबस और लाचार कभी नहीं था और न ही होगा कि अनगिनत शकुनी भी उसे धुल चटा सके|
                                                                             धन्यवाद |